Apoorva Shukla

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लेखनी कविता - ख़ुद की खोज

🥀ख़ुद कि खोज🥀

हाय मिला भी तो क्या वेदना और व्यथा का साथ
 रात्रि में निद्रा  लेती  मेरी किसी और की आंखों का स्वाद.. 
अश्रु सींच  रहे हैं रात्रि दिन यह आयाम 
मुस्कान मेरी ले ली किसी और ने शायद... 
 मैं बैठी हूं व्यथा, वेदना में खुद की खोज में लगी 
महीनों हो गए मुझसे मिली नहीं मैं... 
पहले मिलती थी 
हंसती थी... हजारों बातें भी बताती थी
 मैं उब जाती थी... 
अंत में कहना पड़ता था
 तू चुप रह ले ज़रा.. 
हंसती बहुत है कम हंसा कर
 सुना है जो हंसते बहुत है 
उन्हें रोना बहुत पड़ता है... 
 पर उसे कभी कोई फर्क नहीं पड़ा 
सुनती कहां थी मेरी... 
अब अरसा हो गया
 ना मिलती हैं
 ना हंसती है... 
ना कुछ कहती हैं 
ना जाने अब कितना चुप रहती हैं... 
मैं उसकी तलाश में रोज निकलती हूँ
पर वो मिलती नहीं कहीं मुझे... 
 मैंने चाहा कहीं किसी वृक्ष के आलिंगन में 
 या शिउली की डालियों से चुनते हुए फूलों में... 
 किसी बच्चे के साथ बच्ची बनी
 या बारिशों में बेवजह अकेली भिगती हुई... 
शायद मिल जाऊँ मैं ख़ुद से
पर मिलीं नहीं कहीं भी... 
वो शिव की दीवानी कहें जाने वाली 
अब शिव के पास भी नहीं मिलती... 
 उसकी सारी प्रिय चीजें उससे छिन गई  हैं 
शायद...
उसकी हंसी
उसकी खुशी.. 
वह बच्चा जो उसके अंदर जीता था
 सब कुछ उससे छीन गया.. 
मुझे उसकी बहुत याद आती है 
मैं कभी भी उसे खोना नहीं चाहती थी... 
 उसका चुप होना मेरी वेदना हैं 
उसका ना हंसना मेरी पीड़ा... 
उसके आंसू मुझे रुलाते हैं 
उसकी ख्वाहिशों का मर जाना मुझे मारता है... 
 मैंने उसको खो दिया 
अब मैं उसके तलाश में हूँ... 
 कभी-कभी सोचती हूं 
आंखें बंद करूँ... 
 तो आए मेरा मुझे एक सपना 
 वह मुझको मुझसे मिला जाए... 
 मैं पाना चाहती ख़ुद को
अब और मुझसे
ये विरह की बेला सही नहीं जाती... 

ख़ुद से ज़ुदा होना दुनियाँ की सबसे बड़ी यंत्रणा है
यह यंत्रणा इंसान को अंदर ही अंदर खोखली कर देती है... 
अपूर्वा शुक्ला🍁

# प्रतियोगिता

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9 Comments

Swati chourasia

09-Nov-2022 10:53 AM

बहुत ही खूबसूरत रचना 👌

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Apoorva Shukla

09-Nov-2022 11:24 PM

Shukriya

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Gunjan Kamal

08-Nov-2022 01:28 PM

शानदार प्रस्तुति 👌🙏🏻

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Apoorva Shukla

08-Nov-2022 09:54 PM

Shukriya

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Sachin dev

08-Nov-2022 11:40 AM

Amazing

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Apoorva Shukla

08-Nov-2022 09:55 PM

Thanks

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